KRISHNA PAINTING – Dot work…

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ये एक अलग प्रकार का प्रयोग मैंने यहाँ इस पेंटिंग में किया है। जो की स्टेपलिंग के नाम से प्रचलित है। जब की ये पहले ज्यादातर ब्लैक(काला) कलर से किया जाता था। पर मैंने इसमें कुछ अलग तरीकेसे आजमाया है। इसमें मैंने जलरंग (वाटरकलर्स) के प्लेन वॉश के ऊपर इंक पेन से स्टेपलिंग किया है जो की बहोत ही अलग तरीकेसे उभरके आया है इस पेंटिंग में। आप भी ऐसे प्रयोग करके अपने पेंटिंग्स को एक अच्छा लुक दे सकते है। और भी कुछ ऐसी पेंटिंग्स है जो मैं आपसे जरूर शेयर करूँगा आने वाले वक्त में…अब तक सिर्फ इतना ही। ऐसेही मिलते रहेंगे कुछ नई पेंटिंग्स और उसकी शैली के साथ. आपको ये पेंटिंग कैसी लगी जरूर कमेंट में बताना और मेरी ऐसीही पेंटिंग्स और उसकी शैली जानने के लिए आप मेरे ब्लॉग को फॉलो कर सकते है..तब तक के लिए नमस्कार …अपना ख्याल रखे।।
आपका चित्रकार मित्र 
माणिकराज भांबुरे…

ये एक छोटीसी जानकारी कृष्णा के बारेमे मिली है वो नीचे शेयर की है।।

यह अवतार उन्होंने वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें द्वापर में श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागर में लिया था। वास्तविकता तो यह थी इस समय चारों ओर पाप कृत्य हो रहे थे। धर्म नाम की कोई भी चीज नहीं रह गई थी। अतः धर्म को स्थापित करने के लिए श्रीकृष्ण अवतरित हुए थे। ब्रह्मा तथा शिव -प्रभृत्ति देवता जिनके चरणकमलों का ध्यान करते थे, ऐसे श्रीकृष्ण का गुणानुवाद अत्यंत पवित्र है। श्रीकृष्ण से ही प्रकृति उत्पन्न हुई। सम्पूर्ण प्राकृतिक पदार्थ, संपूर्ण प्रकृति का सृजन किया और उसे अपना महत्वपूर्ण कर्म समझा, अपने कार्य की सिद्धि के लिए उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद सभी का उपयोग किया, क्योंकि उनके अवतीर्ण होने का मात्र एक उद्देश्य था कि इस पृथ्वी को पापियों से मुक्त किया जाए। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए धर्मानुसार एवं कर्मानुसार, उन्होंने जो भी उचित समझा वही किया। उन्होंने कर्मव्यवस्था को सर्वोपरि माना, कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को कर्मोज्ञान का उपदेश देते हुए उन्होंने गीता की रचना की जो कलिकाल में धर्म में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है।
संपूर्ण पृथ्वी दुष्टों एवं पतितों के भार से पीड़ित थी। उस भार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने एक प्रमुख अवतार ग्रहण किया जो कृष्णावतार के नाम से संपूर्ण संसार में प्रसिद्ध हुआ। उस समय धर्म, यज्ञ, दया पर राक्षसों एवं दानवों द्वारा आघात पहुँचाया जा रहा था।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥”
पृथ्वी पापियों के बोझ से पूर्णतः दब चुकी थी। समस्त देवताओं द्वारा बारम्बार भगवान विष्णु की प्रार्थना की जा रही थी। विष्णु ही ऐसे देवता थे, जो समय-समय पर विभिन्न अवतारों को ग्रहण कर पृथ्वी के भार को दूर करने में सक्षम थे क्योंकि प्रत्येक युग में भगवान विष्णु ने ही महत्वपूर्ण अवतार ग्रहण कर दुष्ट राक्षसों का संहार किया। वैवस्वत मन्वन्तर के अट्ठाईसवें द्वापर में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण अवतरित हुए।

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